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बहुत दिन हुए / सुदर्शन वशिष्ठ

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|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
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<poem>
बहुत दिन हुए
कोई फूल न खिला
बहुत दिन हुए
आम बौराए
पिया घर आये।

बहुत दिन हुए
बिहार में हिंसा नहीं हुई
कश्मीर में नहीं मरा कोई नागरिक
बहुत दिन हुए
टेलिविजन में छिप कर बड़े लोग
नहीं कर रहे बहस।

बहुत दिन हुए
सीमा पर नहीं हुई गोलाबारी
कोई हताहत नहीं हुआ
बहुत दिन हुए
दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुआ भारतीय यान
बहुत दिन हुए
किसी जाँच के आदेश नहीं हुए।

बहुत दिन हुए
कस्टम ने नहीं पकड़ा सोना या चरस
सी.बी,आई. ने नहीं मारा छापा।
बहुत दिन हुए पुलिस ने नहीं किया कोई अपराध
मंत्री ने नहीं किया घोटाला
बहुत दिन हुए
कोई सरकार नहीं पलटी
बहुत दिन हुए
चुनाव नहीं हुआ
बहुत दिन हुए
कोई साहित्यकार सम्मानित नहीं हुआ
अपमानित हुये भी बहुत दिन हो गये।

बहुत दिन हुए सावन हरे
बहुत दिन हुए बर्फ़् गिरे।

बहुत दिन हुए
कोई खबर नहीं छपी मेरे खिलाफ
कोई मोर्चा नहीं बंधा।

बहुत दिन हुए
कुछ बुरा नहीं हुआ
अच्छा होते हुए भी
बहुत दिन हुए।

इतना अनहोना होते हुए भी
बहुत दिन हुए
कोई फूल न खिला
बहुत दिन हुए
आम बौराए
पिया घर आये।
</poem>
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