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08:40, 18 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आग्नेय
|संग्रह=मेरे बाद मेरा घर / आग्नेय
}}
<Poem>
मैं दुधारी तलवार के लिए
खड़ा हूँ
समय के खिलाफ़
पंख वाले चींटे के पास
जितना समय है उतना ही समय है
दीमक-समय जीवन का सब कुछ
चाट जाएगा
गिद्ध-समय शरीर के सारे अंग
भकोस लेगा
दुधारी तलवार के लिए
खड़ा रहेगा मेरा कंकाल
क्यों खड़ा हूँ ? फिर भी
मैं दुधारी तलवार लिए
समय के खिलाफ़।
</poem>