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नहीं है उसको मेरे रंजो ग़म का अंदाज़ा / अहमद अली 'बर्क़ी' आज़मी
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17:54, 26 फ़रवरी 2009
गुरेज़ करते हैँ सब उसकी मेज़बानी से
भुगत रहा है वह अपने किए का
ख़ामयाज़ा
ख़मियाज़ा
है तंग क़फिया इस बहर में ग़ज़ल के लिए
दिखाता वरना मैं ज़ोरे क़लम का अंदाज़ा
वह सुर्ख़रू नज़र आता है इस लिए
`
बर्क़ी
'
है उसके चेहरे का ख़ूने जिगर मेरा ग़ाज़ा
द्विजेन्द्र द्विज
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