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हाल—ए—दिल जिनसे कहने की थी आरज़ू / साग़र पालमपुरी
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12:24, 27 फ़रवरी 2009
हाल-ए-दिल जिनसे कहने की थी आरज़ू
वो मिले तो हमीं से
लगे हू-ब-हू
जिस्म के बन के भीतर ही
था वो कहीं
जिसको ढूँढा किये दर-ब-दर , कू-ब-कू
द्विजेन्द्र द्विज
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