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सहर्ष स्वीकारा है / गजानन माधव मुक्तिबोध
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17:16, 7 सितम्बर 2006
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नही होती है !!!<br><br>
सचमुच मुझे दण्ड दो
के
कि
हो जाऊँ<br>
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में<br>
धुएँ के बाद्लों में<br>
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घनश्याम चन्द्र गुप्त