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कवि बोला-"जी हाँ, थे
मगर आप ये क्यों पूछ रहे हैं।"
उत्तर मिला-"हम आपकी बेवक़ूफ़ी की जड़ ढूढ ढूंढ रहे हैं।"
अबकी बार-
मंच पर ही नहीं
छाती पर भी चढ़ सकते है।"
आवाज़ आई -"यहा से दरासिंग दारासिंग भी
आड़ासिंग होकर गए है।"
कवि बोला-"हम दारासिंग नहीं हैं
ख़ाके ज़मीं के साथ अगर कहकशां चले।"
किसी ने तुक मारी-
"बदनाम करके प्रीतम मुझ को कहा कहाँ चले।"
कवि ने स्वर बदला-
"रूप तुम्हारा मन में कस्तूरी बो गया।"
या खेती कर रहे हो।"
कवि बैठते हुए बोला-"ऐसा रिसपाँस मिलेगा
तो खेती ही करना पड़ेगा।करनी पड़ेगी।"
अब व्यंग्यकार को पुकारा गया-
लड़खड़ाते हुए कहा-
"देश लड़खड़ा रहा है, सम्भालो।"
आवाज़ आई-"थोड़ी सी और लगालो।लगा लो।"
कवि बोला-"आप मेरा नहीं
हिन्दी साहित्य का अपमान कर रहें हैं।"
और हिन्दी का सारा साहित्य
आप ही के नाम से बिका है।"
कवि बोला-"हम प्रणाम प्रमाण दे सकते हैं।"
आवाज़ आई-"क्यों नहीं,
आप 'गीतांजलि' को पी सकते हैं
'मेघदूत' को खा सकते हैं
और 'कामायनी' तक पर
अंगुली उंगुली उठा सकते हैं।"
कवि बोला-"हमने दिल्ली से मद्रास तक
बड़े-बड़े मंचो को हिलाया हैं।
इतनी देर बाद संचालक को अक़्ल आई
तो उसने मंच पर अपनी माय माया फैलाई
कवयित्री की ग़ज़ल गूंजी।
"सुबह न आया, शाम न आया
उनका कोई पैगाम न आया।"
आवाज़ आई-"इंतज़ार बेकार हैं
पोस्टमेन पोस्टमैन बिमार है।"
कवयित्री बोली-"शोर मत मचाओ
दम है तो मंच पर आ जाओ।"
उत्तर मिला-"इक्यावन रूपये लूंगा।"
सन्योजक संयोजक बोला-"बहिन जी उसे रोकिए
मैं एक पैसा भी नहीं दूंगा।
वो लोकल कवि है
इक्यावन रूपये में बावन कविताएं कविताएँ सुनाएगा
और मंच पर रखे हुए सारे पान
अकेले खा जएगा।"
माइक नीचे झुकाया
मसनद नीचे लगाया
धीरज जी बोले-"मैं आगया आ गया हूँ, बजाओ
तालियाँ बजाओ।"
कई आवाज़े एक साथ आई-
"आप तो कह रहे थे यहाँ नहीं मिलती।"
सन्योजक बोला- "व्हिस्की नहीं, ठर्रा मिलता है।"
कविवर एश ऐश जी और बागी जी
एक साथ बोले-"मंगवा दो अपुन को चलता है।"
तभी संचालक ने घोषणा की-"आ गए,आ गए
कविवर नौटंकीलाल आ गए
मुश्किल से आ पाए है
और माइक को नायिका समझकर
उससे झूम गए
बोले-"हाँ तो मेरी जान, मेरे मीत
लो, सुन लो
मेरी नई-नई फ़िल्म का धांसू गीत