<Poem>
मैंने तसब्बुर में तराश्करतराशकर
रंगों से था इक बुत बनाया
मुकद्दर की चिंगारी इक दिन
न जाने उदासी का इक दरिया
कहाँ से कश्ती में आ बैठा
खा़मोशी में कैद नज्म्नज़्म
आँखों से शबनम बहा बैठी
झाड़ती रही जिस्म से
ताउम्र दर्द दर्द के जो पत्ते
उन्हीं पत्तों से मैं
घर अपना सजा बैठी