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04:12, 9 मार्च 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पॉल एल्युआर
}}
<poem>
'''किरण'''
वह आई थी
उस ढलान पर चढ़ती
जो काटता था हमारी गली को
मस्त है
हलकी है
और उतनी ही साफ है वह
जितना बिन बदली आकाश
परिपूर्ण प्रुनेल*
तब तक के लिए
जब तक रात की रानी
दिन को
उल्लुओं के हवाले नहीं करती
</poem>
* एक प्रकार का पक्षी
(मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी)