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{{KKRachna
|रचनाकार = रघुवीर सहाय}} {{KKPustak|चित्र=Hanso hanso.jpg|नाम=हँसो हँसो जल्दी हँसो|रचनाकार=[[रघुवीर सहाय]]|प्रकाशक=नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |वर्ष= 1978|भाषा=हिन्दी|विषय=कविता|शैली=--|पृष्ठ=80|ISBN=|विविध=वसंत सहाय
}}
<poem>
हँसो तुम पर निगाह रखी जा रही जा रही है
हँसो अपने पर न हँसना क्योंकि उसकी कड़वाहट पकड़ ली जाएगी
और तुम मारे जाओगे
ऐसे हँसो कि बहुत खुश न मालूम हो
वरना शक होगा कि यह शख्स शर्म में शामिल नहीं
और मारे जाओगे
हँसते हँसते किसी को जानने मत दो किस पर हँसते हो
सब को मानने दो कि तुम सब की तरह परास्त होकर
एक अपनापे की हँसी हँसते हो
जैसे सब हँसते हैं बोलने के बजाए
जितनी देर ऊंचा गोल गुंबद गूंजता रहे, उतनी देर
तुम बोल सकते हो अपने से
गूंज थमते थमते फिर हँसना
क्योंकि तुम चुप मिले तो प्रतिवाद के जुर्म में फंसे
अंत में हँसे तो तुम पर सब हँसेंगे और तुम बच जाओगे
हँसो पर चुटकलों से बचो
उनमें शब्द हैं
कहीं उनमें अर्थ न हो जो किसी ने सौ साल साल पहले दिए हों
बेहतर है कि जब कोई बात करो तब हँसो
ताकि किसी बात का कोई मतलब न रहे
और ऐसे मौकों पर हँसो
जो कि अनिवार्य हों
जैसे ग़रीब पर किसी ताक़तवर की मार
जहां कोई कुछ कर नहीं सकता
उस ग़रीब के सिवाय
और वह भी अकसर हँसता है
* [[/ रघुवीर सहाय]]* [[/ रघुवीर सहाय]]* [[हँसो हँसो जल्दी हँसो/ रघुवीर सहाय (कविता)]]इसके पहले कि वह चले जाएंउनसे हाथ मिलाते हुएनज़रें नीची किएउसको याद दिलाते हुए हँसो* [[/ रघुवीर सहाय]]कि तुम कल भी हँसे थे !* [[/ रघुवीर सहाय]]