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उनकी पराजय / हेमन्त जोशी

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|रचनाकार=हेमन्त जोशी
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वे खुश हैं कि समाजवाद पराजित हो रहा है
मैं खुश हूँ कि आदमी में अभी लड़ने का हौसला बाक़ी है

वे कहते हैं कहाँ है तुम्हारी कविता में छंद
कहाँ है तुक
कहाँ है लय

लय-तुक-छंद मैं नहीं जानता
कहाँ करता हूँ मैं कविता
मैं तो जीता हूँ स्वच्छंद
बोलता जाता हूँ निर्बंध।

मेरे वक्तव्यों में झलकती है उनकी पराजय
उनका भय
उनकी क्षय।

</poem>
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