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रसवन्ती (कविता) / रामधारी सिंह "दिनकर"
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12:26, 30 मार्च 2009
तॄणों में कभी खोजता फिरा <br>
विकल मानवता का कल्याण, <br>
बैठ खण्डहर मे करता रहा <
b
br
>कभी निशि-भर अतीत का ध्यान.
<br>
S.K.Jhingan
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