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जयशंकर प्रसाद

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/* जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ */
* '''[[लहर / जयशंकर प्रसाद]]'''
* [[सब जीवन बीता जाता है / जयशंकर प्रसाद]]
* [[हिमाद्रि तुंग श्रृंग से / जयशंकर प्रसाद]]
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
}}
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से
 
प्रबुद्ध शुद्ध भारती
 
स्वयंप्रभा समुज्ज्वाला
 
स्वतंत्रता पुकारती
 
'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ- प्रतिज्ञ सोच लो,
 
प्रशस्त पुन्य पथ है, बढे चलो, बढे चलो!'
 
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ
 
विकीर्ण दिव्य दाह-सी
 
सपूत मातृभूमि के-
 
रुको न शुर साहसी !
 
अराति सैन्य सिंधु में ,सवान्ग्वाग्नी से चलो,
 
प्रवीर हो जयी बनो - बढे चलो, बढे चलो !
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