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लगता था / व्योमेश शुक्ल
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13:58, 10 अप्रैल 2009
|रचनाकार=व्योमेश शुक्ल
}}
<poem>
हमें लगता था कि सबकुछ को ठीक करने के लिए
बातचीत के चालूपन में वाक्य विन्यास को क़ायदे से
सँभाल लिया जाय
लेकिन, फिर बहुत समय बीत गया
औऱ अब लगता है कि हमें ऐसा लगता था
</poem>
अनिल जनविजय
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