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किशोर / व्योमेश शुक्ल

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|रचनाकार=व्योमेश शुक्ल
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कहने को यही था कि किशोर अब गुब्बारे में चला गया है लेकिन
वहाँ रहना मुश्किल है दुनिया से बचते हुए
खाने नहाने सोने प्यार करने को
दुनिया में लौटना होता है किशोर को भी

यदि कोई बनाये तो किशोर का चित्र सिर्फ काले रंग से बनेगा
वह बाक़ी रंग गुब्बारे में अब रख आता है
वहीं करेगा आइंदा मेकप अपने हैमलेट होरी घासीराम का
यहाँ बड़ी ग़रीबी है कम्पनी के पर्दे मैले और घायल हैं
हनुमान दिन में कोचिंग सेंटर रात में भाँग की दुकान चलाता है
होरी फिर से कर्ज़ में है
और इस बार उसे आत्महत्या कर लेनी चाहिए
कुछ अप्रासंगिक पुराने असफल चेहरे बिना पूछे बताते हैं कि होरी का पार्ट
एक अर्सा पहले, किशोर ही अदा करता था या कोई और करता था
इस बीच एक दिन वह मुझसे कुछ कह रहा था या पैसे माँग रहा था
असफल लोगों को याद है या याद नहीं है
मुझसे किशोर ने कुछ कहा था या नहीं कहा था
विपत्ति है थियेटर घर फूँककर तमाशा देखना पड़ता है

दर्शक आते हैं या नहीं आते
नहीं आते हैं या नहीं आते

भारतेंदु के मंच पर आग लग गई है लोग बदहवास होकर अंग्रेजी में भाग रहे हैं
किशोर देखता हुआ यह सब अपने मुँह के चित्र में खैनी जमाता है ग़ायब हो जाता है
शाहख़र्च रहा शुरू से अब साँस ख़र्च करता है गुब्बारे फुलाता है
सुरीला था किशोर राग भर देता है गुब्बारों के खेल में बच्चे
यमन अहीर भैरव तिलक कामोद उड़ाते हैं अपने हिस्से के खेल में
बहुत ज्यादा समय में बहुत थोड़ा किशोर है
साँस लेने की आदत में बचा हुआ
गाता
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