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कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] |संग्रह= ~*~*~*~*~*~*~*~ }}<poem>
बदरिया थम-थनकर झर री !
 
सागर पर मत भरे अभागन
 
गागर को भर री !
 
 
बदरिया थम-थमकर झर री !
 
एक-एक, दो-दो बूँदों में
 
बंधा सिन्धु का मेला,
 
सहस-सहस बन विहंस उठा है
 
यह बूँदों का रेला।
 
तू खोने से नहीं बावरी,
 
पाने से डर री !
 
 
बदरिया थम-थमकर झर री!
 
जग आये घनश्याम देख तो,
 
देख गगन पर आगी,
 
तूने बूंद, नींद खितिहर ने
 
साथ-साथ ही त्यागी।
 
रही कजलियों की कोमलता
 
झंझा को बर री !
 
 
बदरिया थम-थमकर झर री !
</poem>
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