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ज्योत से ज्योत जगाते चलो / भजन

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{{KKBhaktiKavya|रचनाकार=KKGlobal}}{{KKBhajan}}<poem>ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलोराह में आए जो दीन दुखी सबको गले से लगाते चलो ॥
ज्योत से ज्योत जगाते जिसका न कोई संगी साथी ईश्वर है रखवालाजो निर्धन है जो निर्बल है वह है प्रभू का प्याराप्यार के मोती लुटाते चलो , प्रेम की गंगा बहाते चलो<br>राह में आए जो दीन दुखी सबको गले से लगाते चलो ॥<br><br>
जिसका न कोई संगी साथी ईश्वर आशा टूटी ममता रूठी छूट गया है रखवाला<br>किनाराजो निर्धन है जो निर्बल है वह है प्रभू बंद करो मत द्वार दया का प्यारा<br>दे दो कुछ तो सहाराप्यार के मोती लुटाते दीप दया का जलाते चलो, प्रेम की गंगा <br><br>
आशा टूटी ममता रूठी छूट गया है किनारा<br>बंद करो मत द्वार दया का दे दो कुछ तो सहारा<br>दीप दया का जलाते चलो, प्रेम की गंगा <br><br> छाया है छाओं और अंधेरा भटक गैइ हैं दिशाएं<br>मानव बन बैठा है दानव किसको व्यथा सुनाएं<br>
धरती को स्वर्ग बनाते चलो, प्रेम की गंगा
</poem>