{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=ताकि सनद रहे/ ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
जीवन
बहुत-बहुत छोटा है,
और न खींचो रार!!
यूँ भी हम -तुम
मिले देर से
जन्मों के फेरे में,
मिलकर भी अनछुए रह गए
देहों के घेरे में.में।
जग के घेरे ही क्या कम थे
अपने भी घेरे
रच डाले,
लोकलाज लोक-लाज के पट क्या कम थे
डाल दिए
शंका के ताले?
काल कोठरी
मरण प्रतीक्षा
साथ-साथ रहने के.के।
सूली ऊपर सेज सजाई
पिया की
चौखट पर
कबिरा ने.ने।
मिलन महोत्सव
सांझ घिरे मुरली,
लहरों-लहरों बिखर बिखर कर
रेत-रेत हो सुध ली.ली।
स्वाति-बूँद बूंद तुम बने
कभी, मैं
चातक-तृषा अधूरी,
तपते हरसिंगार!
मुखर मौन मनुहार!!
</poem>