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मुक्ति / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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,
08:25, 25 अप्रैल 2009
}}
<poem>
तोड़ो, तोड़ो,
तोड़ो
कारापत्थर, की
निकलो
फिर,
:::गंगा-जल-धारा!
गृह-गृह
की
पार्वती!पुनः सत्य-सुन्दर-
शिव्को
शिव को
सँवारतीउर-उर
की
बनो
आरती!भ्रान्तों
की
निश्चल
ध्रुवतारा!
तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा!
</poem>
अनिल जनविजय
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