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हास्य-रस -दो / अकबर इलाहाबादी

No change in size, 06:19, 26 अप्रैल 2009
"फाँकिये ख़ाक़ आप भी साहब हवा खाने गये"
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ख़ुदा की राह में अब रेल चक चल गई ‘अकबर’!
जो जान देना हो अंजन से कट मरो इक दिन.
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