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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
अब न बालों और गालों की कथा लिखिए
देश लिखिए, देश का असली पता लिखिए

एक जंगल, भय अनेकों, बघनखे, खंजर
नाग कीले जायँ ऐसी सभ्यता लिखिए

शोरगुल में धर्म के, भगवान के, यारो!
आदमी होता कहाँ-कब लापता ? लिखिए

बालकों के दूध में किसने मिलाया विष ?
कौन अपराधी यहाँ ? किसकी ख़ता ? लिखिए

वे लड़ाते हैं युगों से शब्दकोषों को
जो मिलादे हर हृदय वह सरलता लिखिए

एक आँगन, सौ दरारें, भीत दीवारें
साजिशों के सामने अब बंधुता लिखिए

लोग नक्शे के निरंतर कर रहे टुकड़े
इसलिए यदि लिख सकें तो एकता लिखिए
</Poem>