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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
कुछ लोग जेब में उसे धर घूम रहे हैं
सबसे विशाल विश्व में जो संविधान है


हर बार हर चुनाव में बस सिद्ध यह हुआ
जितना चरित्रहीन जो उतना महान है

ये वोट के समीकरण समझा न आदमी
कुर्सी की ओर हर शहीद का रुझान है

वे सूत्रधार संप्रदाय-युद्ध के बने
बस एकता - अखंडता जिनका बयान है

गूँगा तमाशबीन बना क्यों खड़ा है तू ?
तेरी कलम , कलम नहीं , युग की ज़बान है
</Poem>