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काँप रही है
दमयंती के
देह से झरता पसीना
गंध बहती रोमकूपों से उमड़कर :
सूँ-साँ - मनुष मानुष गंध......
पसीने की खुशबू.........
मिट्टी की महक।
आँखों में पानी
और नसों में गर्म जीवित लहू
लेता उछालउछाला!
देवों का सम्मोहन
आखिर काट डाला!
 
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