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हाथों में वरमाला / ऋषभ देव शर्मा
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,
17:28, 27 अप्रैल 2009
}}
<Poem>
काँप रही है
दमयंती के
देह से झरता पसीना
गंध बहती रोमकूपों से उमड़कर :
सूँ-साँ -
मनुष
मानुष
गंध......
पसीने की खुशबू.........
मिट्टी की महक।
आँखों में पानी
और नसों में गर्म जीवित लहू
लेता
उछाल
उछाला
!
देवों का सम्मोहन
आखिर काट डाला!
</poem>
चंद्र मौलेश्वर
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