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'''शीर्षक: '''यार दहलीज़ छू करतुम मान्दोरिया<br> '''रचनाकार:''' [[विजय वातेठाकुर प्रसाद सिंह]]
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यार दहलीज़ छू कर ना जाया करो|तुम कभी दोस्त बनकर भी आया करो|मान्दोरिया
क्या ज़रूरी है सुख दुख में ही बात हो,जब कभी फोन यूँ ही लगाया करो|हम नाचोनिया
बीते आवारा दिन याद करके कभी,
अपने ठीये पे चक्कर लगाया करो|
वक़्त की रेत मुट्ठी में रुकती नहीं,मादर ना बजाइसलिए कुछ हरे पल चुराया करो|रसीला मादर न बजा बाप खड़े माँ खड़ी खिड़की का पल्ला धरे खड़ा है पिया हम नाचोनिया मादर ना बजा
हमने गुमटी पर कल चाय पी थी "विजय"
तुम भी आकर के मज़मे लगाया करो|
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