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आँखों में बस के दिल में समा कर चले गये / जिगर मुरादाबादी
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12:05, 2 मई 2009
क्या राज़ था कि जिस को छिपाकर चले गये
रग
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रग में इस तरह वो समा कर चले गये
जैसे मुझ ही को मुझसे चुराकर चले गये
इक आग सी वो और लगा कर चले गये
लब
थर-थरा
थरथरा
के रह गये लेकिन वो ऐ "ज़िगर"
जाते हुये निगाह मिलाकर चले गये
हेमंत जोशी
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