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कट गई झगड़े में सारी रात वस्ल-ए-यार की / अकबर इलाहाबादी
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15:09, 2 मई 2009
हम जो कहते थे न जाना बज़्म में अग़यार की
देख लो नीची निगाहें
होगईं
हो गईं
सरकार की
ज़हर देता है तो दे, ज़ालिम मगर तसकीन को
हेमंत जोशी
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