{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=जिगर मुरादाबादी]]|संग्रह= }}
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:जिगर मुरादाबादी]][[Category:गज़लग़ज़ल]]
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दिल गया रौनके रौनक-ए-हयात गई ।
ग़म गया सारी कायनात गई ।।
हाए हाय सरशरायां जवानी की,
आँख झपकी ही थी के रात गई ।
नहीं मिलता मिज़ाजेमिज़ाज-ए-दिल हमसे,
ग़ालिबन दूर तक ये बात गई ।
मौत आई अगर हयात गई ।
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