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12:40, 5 मई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय
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<poem>
क्यों न मेरा यह हृदय
मूक सा रहने दिया ?
क्या करुँ उस अग्नि का
निशि-दिन जले जो इस हृदय में
क्या करुँ उस व्यग्रता का
जा छिपी जो उर-निलय में
क्यों असीमित यह प्रणय
बहु-रूप सा रहने दिया ?
तारकों की तूलिका से
रंगा है, वो व्यथा का आकाश है
घन-तिमिर की लहर में
आंसुओं के कमल का आवास है
क्यों न स्मृति-निलय मेरा
शून्य-सा रहने दिया ?
क्यों न मेरा यह हृदय
मूक-सा रहने दिया ?
</poem>