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12:40, 9 मई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय
}}
<poem>
'''(१)'''
"बहुत दूर नहीं
बहुत पास "
कहकर
तुमने बहका दिया
मैं बहक गया ।
'''(२)'''
"एक,दो,तीन.....नहीं
शून्य मूल्य-सत्य है "
कहा
फिर अंक छीन लिए
मैं शून्य होकर विरम गया ।
'''(३)'''
तुम हो
जड़ों के भीतर, वृन्त पर नहीं
तुमने
ऐसा आभास दिया
मैंने जड़े खोद दीं ।
'''(४)'''
"विकल्प की कैसी आस
सत्य तो निर्विकल्प है "
मुझे समझाया था
मैं अब तलक
ढूंढ रहा हूँ सत्य ।
'''(५)'''
"चरैवेति, चरैवेति'
नारद ने कहा था, तुमने भी कहा
मैंने आस की डोर पकड़ ली
अभी तक मैं चल रहा हूँ
चलता ही जा रहा हूँ ।
</poem>