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ये सब्जमंद-ए-चमन है / जिगर मुरादाबादी
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18:52, 9 मई 2009
ये सब्जमंद-ए-चमन है जो लहलहा ना सके<br>
वो गुल
हे
है
ज़ख्म-ए-बहाराँ जो मुस्कुरा ना सके<br><br>
ये आदमी है वो परवाना, सम-ए-दानिस्ता<br>
हेमंत जोशी
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