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इक लफ़्ज़े-मोहब्बत का / जिगर मुरादाबादी
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03:48, 10 मई 2009
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है <br>
आँसू तो बहोत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बिँध्
बिँध
जाये सो मोती है रह जाये सो दाना है <br>
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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