गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
1 byte removed
,
06:20, 12 मई 2009
दिल मुद्दई के हर्फ़-ए-मलामत से शाद है<br>
अए
ऐ
जान-ए-जाँ ये हर्फ़ तेरा नाम ही तो है<br><br>
दिल ना-उम्मीद तो नहीं,
न-काम
नाकाम
ही तो है<br>
लम्बी है ग़म की शाम, मगर शाम ही तो है<br><br>
हेमंत जोशी
Mover, Uploader
752
edits