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कविता / मुकुटधर पांडेय
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08:50, 1 सितम्बर 2006
कविता शैशव का सुविचार अनूप है ।
कविता
भावोन्मतों
भावोन्मत्तों
का सुप्रलाप है,
कविता कांत-जनों का मृदु आलाप है ।
कविता आत्मोद्धारण हेतु दृढ़ ढाल है ।
कविता कोई लोकोत्तर
आल्हाद
आह्लाद
है,
कविता सरस्वती का परम प्रसाद है ।
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पूर्णिमा वर्मन