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19:08, 14 मई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
मैं नहीं पिछली अभी झंकार भूला,
मैं नहीं पहले दिनों का प्यार भूला,
गोद में ले, मोद से मुझको लसो तो;
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
हाथ धर दो, मैं नया वरदान पाऊँ,
फूँक दो, बिछुड़े हुए मैं प्राण,
स्वर्ग का उल्लास, पर भर तुम हँसो तो;
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
मौन के भी कंठ में मैं स्वर भरूँगा,
एक दुनिया ही नई मुखरित करूँगा,
तुम अकेली आज अंतर में बसो तो;
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
रात भागेगी, सुनहरा प्रात होगा,
जग उषा-मुसकान-मधु से स्नात होगा,
तेज शर बन तुम तिमिर घन में धँसो तो;
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।