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खामोशी बोल उठे, हर नज़र पैगाम हो जाये / शकेब जलाली
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13:35, 15 मई 2009
शकेब अपने तआरुफ़ के लिए ये बात काफ़ी है
हम उससे बच के चलते हैं जो रास्ता आम हो जाये
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द्विजेन्द्र द्विज
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