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आमों की तारीफ़ में / ग़ालिब
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,
20:11, 17 मई 2009
जब ख़िज़ाँ आये तब हो उस की बहार<br><br>
और
दौड़ाईए
दौड़ाइए
क़यास कहाँ<br>
जान-ए-शीरीँ में ये मिठास कहाँ<br><br>
जान में होती गर ये शीरीनी<br>
'कोहकन' बावजूद-ए-ग़मगीनी <br><br>
हेमंत जोशी
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