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रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 4

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|रचनाकार=रामधारी सिंह '"दिनकर'" |संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह '"दिनकर'"
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खड्‌ग बड़ा उद्धत होता है, उद्धत होते हैं राजे,
जय पुकारती प्रजा रात-दिन राजा जयी यशस्वी की!
 
 
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