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किसी को दे के दिल कोई नवासंजे-फ़ुग़ाँ क्यों हो / ग़ालिब
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19:06, 20 मई 2009
वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा <br>
तो फिर ऐ
सन्गदिल
संग-ए-दिल
तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यों हो<br><br>
क़फ़स में मुझ से रूदाद-ए-चमन कहते न डर हमदम <br>
हेमंत जोशी
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