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नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाये न बने / ग़ालिब
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18:38, 22 मई 2009
क्या बने बात जहाँ बात बनाये न बने <br><br>
मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर
अए
ऐ
जज़्बा-ए-दिल <br>
उस पे बन जाये कुछ ऐसी कि बिन आये न बने <br><br>
हेमंत जोशी
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