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एक शे’र / अली सरदार जाफ़री
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06:20, 25 मई 2009
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तिरगी
तीरगी
<ref>अंधकार</ref> फिर ख़ूने-इंसाँ की क़बा<ref>गाउन</ref> पहने हुए
दे रही है सुब्हे-नौ का कमनिगाहों को फ़रेब
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चंद्र मौलेश्वर
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