Changes

|रचनाकार=बिहारी
|संग्रह=
}}<poem>
हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ।
साराँ देखे लाज मराँ छाँ आवाँ किण जतनाँ॥
छैल अनोखो कह्यो न मानै लोभी रूप सनाँ।
रसिक बिहारी नणद बुरी छै हो लाग्यो म्हारो मनाँ॥
</poem>