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{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद नारायण मुल्ला
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सफ़-ए-अव्वाल से फ़क्त एक ही मयक्वार उठा ।
कितनी सुनासान है तेरी महफ़िल साकी ।।


ख़त्म हो जाए न कहीं शुशबू भी फूलों के साथ,

यही खुशबू तो है इस बज़्म का हासिल साखी ।
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