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19:40, 27 मई 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=आनंद नारायण मुल्ला
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सफ़-ए-अव्वाल से फ़क्त एक ही मयक्वार उठा ।
कितनी सुनासान है तेरी महफ़िल साकी ।।
ख़त्म हो जाए न कहीं शुशबू भी फूलों के साथ,
यही खुशबू तो है इस बज़्म का हासिल साखी ।