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अस्वीकरण
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हद-ए-निगाह तक ये ज़मीं / शहरयार
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18:32, 29 मई 2009
निकली है जुगनुओं की भटकती सिपाह फिर<br><br>
होंठों पे आ रहा है कोई नाम बार
-
बार <br>
सन्नाटों की तिलिस्म को तोड़ेगी आह फिर <br><br>
हेमंत जोशी
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