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किसे देखें कहाँ देखा ना जाये / नासिर काज़मी
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13:53, 30 मई 2009
पुरानी सुहब्बतें याद आती है<br>
चरागों का
धुआ
धुआँ
देखा ना जाये<br><br>
भरी बरसात खाली जा रही है<br>
वही जो हासिल-ए-हस्ती है नासिर<br>
उसी को
मेहेरबान
मेहरबान
देखा ना जाये
हेमंत जोशी
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