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कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर / नासिर काज़मी
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14:10, 30 मई 2009
ये कह के छेड़ती है हमें दिलगिरफ़्तगी <br>
घबरा गये हैं आप तो
बहर
बाहर
ही ले चलें <br><br>
इस शहर-ए-बेचराग़ में जायेगी तू कहाँ <br>
आ ऐ शब-ए-फ़िराक़ तुझे घर ही ले चलें <br><br>
हेमंत जोशी
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