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कै रति रँग थकी थिर ह्वै / पद्माकर
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05:15, 3 जून 2009
इन्दु मनो अरविन्द पै राजत इन्द्र बधून को बॄन्द बिछाय कै।
'''पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल
मलहोत्रा
महरोत्रा
के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
</Poem>
अनिल जनविजय
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