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फिर सावन रुत की पवन चली / नासिर काज़मी
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11:28, 7 जून 2009
फिर अम्रत रस की बूँद पड़ी तुम याद आये<br><br>
पहले तो मैं चीख़ के रोया
और
फिर हँसने लगा<br>बादल
गर्जा
गरजा
बिजली चमकी तुम याद आये<br><br>
दिन भर तो मैं दुनिया के
धन्धों
धंधों
में खोया रहा<br>
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आये<br><br>
हेमंत जोशी
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