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अशवों को चैन ही नहीं आफ़त किये बगैर
तुम, और मान जाओ शरारत किये बगैर!
अहल-ए-नज़र को यार दिखाना रहराह-ए-वफ़ा
काश! ज़िक्र-ए-दोज़ख-ओ-जन्नत के किये बगैर
हमनशीं मुहाल है नासेह का टालना
यह, और यहाँ से जाएँ नसीहत किये बगैर
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