<poem>
उदित उदयगिरि अवलीन जैसे रवि ,
जैसे राजै सरस कुसुम पुँज कोद मेँ ।
कवि राजहँस जैसे सर मे सरोज वर ,
जैसे मनहर सुर सुँदर सरोद मेँ ।
राजत भरत ज्योँ शकुँतला के अँक रघु राजै ज्योँ सुदच्छिना की गोद मेँ ।
तैसे ही हरनहारो प्यारो छविवारो सिसु ,
तरुनी तिया को पागै लाज औ प्रमोद मेँ ।