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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''निडर औरतेंआयो घोष बड़ो व्यापारी<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[शुभादेवेन्द्र आर्य]]
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हम औरतें चिताओं को आग नहीं देतींआयो घोष बड़ो व्यापारीक़ब्रों पर मिट्टी नहीं देतींहम औरतें मरे हुओं को भी बहुत समय जीवित देखती हैंपोछ ले गयो नींद हमारी
सच तो ये है हम मौत कोकभी जमूरा कभी मदारीलगभग झूठ मानती हैंऔर बिछुड़ने का दुख हमख़ूब समझती हैंऔर बिछुड़े हुओं को हमखूब याद रखती हैंवे लगभग सशरीर हमारीदुनियाओं में चलते-फिरते इसको कहते हैंव्यापारी
हम जन्म देती हैं और इसकोरंग गई मन की अंगिया-चूनरकोई इतना बड़ा काम नहीं मानतींकि हमारी पूजा की जाएदेह ने जब मारी पिचकारी
ज़ाहिर है जीवन को लेकर हम अपना उल्लू सीधा हो बसकाफ़ी व्यस्त रहती हैंऔर हमारा रोना-गानाबस चलता ही रहता हैकैसा रिश्ता कैसी यारी
हम न तो मोक्ष की इच्छा कर पाती हैंन बैरागी आप नशे पर न्यौछावर हो पाती हैंहम नरक का द्वार कही जाती हैंमैं अब जाऊँ किस पर वारी
सारे ऋषि-मुनि, पंडित-ज्ञानीबिकते बिकते बिकते बिकतेसाधु और संत नरक से डरते हैंरुह हो गई है सरकारी
अब जब टूट गई ज़ंजीरेंक्या तुम जीते क्या मैं हारी भूख हिकारत और हम नरक में जन्म देती गरीबीकिसको कहते हैंखुद्दारी? दुनिया की सुंदरतम् कविताइस तरह यह जीवन चलता हैसोंधी रोटी, दाल बघारी
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