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कभी धड़कनों में है दिल की तू, कभी इस जहान से दूर है

ये कमाल है तेरे हुस्न का, कि नज़र का मेरी फितूर है!


तू भले ही हाथ न थाम ले, कभी मुझको अपना पता तो दे

कि भटक न जाऊँ मैं राह में, तेरा दर बहुत अभी दूर है


जो ख्याल में भी न आ सके, उसे प्यार भी कोई क्या करे!

तू खुदा भले ही रहा करे, मुझे नाखुदा पे ग़रूर है


इसे देखना भी नहीं था जो, तो जलाई थी ये शमा ही क्यों!

मेरे दिल को भा गयी इसकी लौ, तो बता ये किसका क़सूर है


जिसे तूने था कभी छू दिया, वो गुलाब और गुलाब था

कहूँ अपने दिल को मगर मैं क्या, जो नशे में आज भी चूर है
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